देर से आयी पर दुरुस्त आयी - 730
देर से आयी, पर दुरुस्त आयी
मेरी , ये सेवा निर्व्युत्री यानी रिटायरमेंट के बाद की पहली दिवाली थी .
पुरानी बीती दिवालियाँ याद आने लगी. इनमे आख़िरी कुछ सालों में जब मैं वरिष्ट पद में था वो भी याद आने लगे .
दिवाली के येक हफ्ते के पहले से ही लोगों का आना जाना रेहता था और उपहार या गिफ्ट देना ऐक प्रकार की रीती बन चुकी थी .
उन सब के लिये कमरे में जगह बनाना आसान काम नहीं था .
उन में कई काम के चीज़ थे और कई जिन को देखकर घिन आने लगती थी . उन सब को फिर किसी और आइन मौक़े पर किसी और बेचारे को देना भी अपने आप में येक बड़ी दिमाग़ लगाने वाली बात थी . बादाम , पिस्ता और काज़ू तो दोस्तों और रिश्तेदारों को बाँटने के बाद भी बच जाया करते थे .
इस साल की बात तो बहुत अलग ही रही. दोपहर के २ बज चुके हैं और ना ही कोई मिलने आया या ना ही किसी ने फ़ोन तक किया .
यहाँ तक की अगस्थिआरपट्टी का सड़क का कुत्ता तक जो बाकायदा हर रोज़ घर पर ऐक चक्कर लगा कर जाया करता था , वो भी हमसे शायद कुछ नाराज़ होने के कारण ना आया.
मुझे अपने आप पर बुरा लगने लगा . और कोई काम नहीं होने के कारण मैं अख़बार पढ़ने लगा .
आध्यात्मिक पन्ने पर पहुंचने पर ऐक कहानी पढ़ने को मिली.
ऐक गधा अपने मालिक के साथ भगवान की मूर्तियों को लेकर ऐक गांव से दूसरी गांव को येक त्योहार के लिये जा रहा था .
गांव से गुज़रते समय गधे ने देखा कि लोग उसे अपना सर झुकाकर प्रणाम कर रहें हैं . गधेको बहुत कुशी हुवी. आज से पहले किसी ने उसे दूसरी बार देखा तक नही था .
त्योहार की जगह पहुंचने के बाद गधे के मालिक ने मूर्तियों को उतार दिया और वापस लौटते समय गधे पर सब्जियां चढ़ा कर अपने गांव निकला .
गधे बिल्कुल हैरान हो गये , किसी ने उन्हें प्रणाम तो दूर , उन्हें देखा तक नही . गधे ने चीखना शुरू किया और इसे सुन कर लोग उसे डंडे से मारने भी लगे .
अब आयी मुझे बात समझ मे , मैं भी इसी गधे की तरह था . लोग दिवाली में मुझे नही मेरी पद की वजह से मुझे भेंट प्रस्तुत करते थे।
मैंने अपने श्रीमती को अपनी समझ बतायी और उससे कहा “ छोड़ो बाकी सबों को , चलो हम दोनों मिलकर दिवाली मनातें हैं “
श्रीमती खुश तो हुवी लेकिन साथ ही साथ बोली “ मैं कितने सालों से आपके गधेपन का इज़हार कर रही थी , लेकिन आपको आज अख़बार पढ़कर ही ये पता चला है !!! “
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