Burning Money - 802

 

        जलाकर राख हुवे हमारे पैसे और कईयों के ख्वाब



आवो हम सब मिलकर इस ज़मीन और आसमान को धुवाँ और पटाकों कि आवाज़ से बचायें । 

हमारी इस ख़ूबसूरत धरती माँ को , और खूबसूरत बनाकर आने वाली पीढ़ियों के लिये छोड़ जायें । 


चिड़ियों या जीव जंतुओं को पटाकों की आवाज़ों से बचाकर उन्हें भी चैन से जीने दें । उन्हें भी इस जगत में उतना ही अधिकार है जितना की मुझे या आपको है ! हमारी ख़ुदग़र्ज़ी उन्हें मौत के क़रीब पहुँचाती है । उन बेचारों को क्या पता की धड़ाके की आवाज़ कहाँ और कब आने वाली है । 


हम से अगर दस के पत्ते को जलाने को कहा जाये तो हज़ार बार सोचेंगे , लेकिन दीवाली के समय में हज़ारों रुपयों को पटाकों का नाम देकर जलाकर राख कर देतें हैं !! 


हज़ारों , लाखों की संख्या में कई लोग आज भी भूक , बिमारी से राहत और रहने की जगह के लिए तरस रहे हैं ! उनके लिए ऐक दिन का गुज़रना ऐक सदी के बराबर बन कर गुज़ारना पड़ता है । 

अपने से कमायी हुवी पैसों को अय्याशी और जलाकर राख करने की जगह क्या हम उन्हें और बेहतर उपयोग कर सकते है । 

ये तो जरूर हम सब को समझने और सोचने वाली बात है , सिर्फ हमारे लिए ही नही बल्कि हमारे आने वाले भविष्य संतानों के लिये ।

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